
Overview
आज की भारतीय जीवन कला पर पश्चिम देशों की कला का काफी प्रभाव पड़ा हैं। परन्तु प्राचीन ग्रन्थों से पता चलाा हैं कि हमारे देश की सीवन कला कई वर्ष पुरानी हैं। बहुत वर्ष पहले में जो भारत में सीवन कला में कार्य हुआ था इसके नमूने आज भी अजायब घरों में देखने को मिलते हैं। उसके नमूने से पता चलता हैं कि आजकल के फैशन उन दिनों के फैशनों से काफी अलग थे। परन्तु सिलाई तत्व बिल्कुल अलग नहीं थे पुराने जमाने में ‘ सूची बात कर्म ’ नाम से कला प्रसिद्ध थी प्राचीन काल में कमीज को ( कंचुक ) और चोली के लिए ( कंचुकी ) शब्द प्रचलित थे। इस समय जब कि सीवन कला वैज्ञानिक रूप धारण कर चुकी हैं। वस्त्रों की सिलाई तथा सजावट में पुराने अन्दाजों की अधिक महता नहीं रह गई हैं अब तो शरीर के अनुसार फिट कपड़ों के लिए ठीक नाप लेकर की कटाई-सिलाई करते हैं इसलिए कपड़े सिलने से पहले हमें उस आदमी का ठीक नाप ले लिया जाए। कपड़ो की ठीक कटाई-सिलाई ठीक नाप पर ही निर्भर हैं।
सिलाई में काम आने वाली सामग्री और इसके प्रयोग के बाद सिलाई विधि का नाम आता हैं। सिलाई की विधि तभी आरम्भ हो जाती हैं जब हम सारे सामान के साथ कपड़े भी लेते हैं। यहां पर हम कपड़े की कटाई, सिलाई और प्रैस करके तह लगाना सीखते हैं और समपूर्ण और पहनने के योग्य कपड़ा बना कर रखते हैं इस विधि को पूर्ण करने के लिए हमें कई कार्य करने पड़ते हैं।
Course Features
- Lectures 53
- Quiz 0
- Duration 10 weeks
- Skill level All levels
- Language English
- Students 3
- Assessments Yes